नव कविता के सूत्रधार थे किसुन जी : डॉक्टर नरेंद्र
रांची : रामकृष्ण झा ‘किसुन’ ने परंपरा के दलदल में फंसे मैथिल समाज को एक नई दिशा दिखाई और मैथिली साहित्य में नव कविता का सूत्रपात किया। वह निरंतर नए रचनाकारों को प्रोत्साहित करते थे और उन्हें सामाजिक स्वीकृति दिलाने के लिए प्रयत्नशील रहते थे। ये बातें ‘बहुआयामी किसुनजी’ पुस्तक के लोकार्पण के अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राँची स्थित योगदा सत्संग कॉलेज के हिंदी के प्राध्यापक डॉक्टर नरेंद्र झा ने कही। गौरतलब है कि ‘बहुआयामी किसुनजी’ पुस्तक का प्रकाशन अंतिका प्रकाशन ने किया है, जिसे मैथिली के दो वरिष्ठ रचनाकारों डॉ महेंद्र और केदार कानन ने संपादित किया है। इस अवसर पर शहर के वरिष्ठ साहित्यकार और साहित्य प्रेमियों की उपस्थिति रही। दूरदर्शन रांची के पूर्व निदेशक प्रमोद कुमार झा ने कहा कि किसुनजी जिस समय मैथिली एवं हिंदी साहित्य में सक्रिय थे, उस समय यात्री और राजकमल चौधरी जैसे महत्वपूर्ण रचनाकार भी सृजनरत थे, लेकिन नव कविता की उन्होंने जिस तरह से वकालत की और उसे मैथिली साहित्य में केंद्रीय जगह दिलाई, वैसा कोई दूसरा रचनाकार नहीं कर सका। झारखंड मिथिला मंच के अध्यक्ष अमरनाथ झा ने कहा कि नव कविता को उन्होंने साहित्यिक आंदोलन का रूप दिया और ज्यादा से ज्यादा रचनाकारों को नव कविता लिखने और नव कविता के पक्ष में लेख लिखने के लिए प्रेरित किया।वरिष्ठ कवि एवं चिंतक महेंद्र पराशर ने कहा कि उन्होंने सुपौल में नव कविता आंदोलन पर एक राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया था, जो काफी सफल रहा और मैथिली साहित्य के इतिहास में उसका गौरव के साथ स्मरण किया जाता हैभारतीय स्टेट बैंक के सेवानिवृत्त पदाधिकारी बदरीनाथ झा ने कहा कि किसुन जी हिंदी और मैथिली में कोई भेदभाव नहीं करते थे और किसी तरह की कट्टरता से दूर ऋषि तुल्य व्यक्ति थे। हालांकि उन्हें बहुत छोटा सा जीवन मिला, लेकिन जीवन के अंतिम क्षण तक व साहित्य के लिए सक्रिय रहे।कहानीकार सुष्मिता पाठक ने कहा कि उन्होंने प्रगतिशील नवलेखन और नई कविता को नई ऊर्जा से ओतप्रोत कर उसे नई राह दिखाई। सुनीता झा एवं किरण झा ने कहा कि उन्होंने प्रगतिशील साहित्यकारों की एक नई और बड़ी पीढ़ी तैयार की और उसे नेतृत्व प्रदान किया। कडरू स्थित डीएवी कपिलदेव के अंग्रेजी शिक्षक पीएन झा ने कहा कि किसुनजी ने मैथिली साहित्य के प्रचार-प्रसार और उसमें प्रगतिशील जीवन मूल्यों को स्थापित करने के साथ-साथ पठन संस्कृति को विकसित करने के लिए मिथिला के गांव-गांव में पुस्तकालय आंदोलन चलाया। समारोह में उपस्थित वंदना झा, रिजिश्वा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। किताब के संपादक केदार कानन ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि इस किताब में किसुन जी के साहित्यिक संघर्ष आंदोलन, उनके साहित्य के मूल्यों, सरोकारों आदि का व्यापक विवेचन किया गया है।