रांची :झारखंड की राजधानी रांची की लोकसभा सीट इस बार हॉटसीट बन गई है,बीजेपी की ओर से संजय सेठ और इंडिया गठबंधन से कांग्रेस प्रत्याशी यशस्विनी सहाय के बीच में कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है,
रांची लोकसभा क्षेत्र के चुनावी समीकरण में कई बदलाव देखने को मिल रहा है।
रांची लोकसभा से कुल 27 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं लेकिन मुकाबला भाजपा उम्मीदवार संजय सेठ और कांग्रेस उम्मीदवार यशस्विनी सहाय के बीच है.
संजय सेठ लगातार दूसरी बार चुनाव मैदान में हैं. उनके मुकाबले कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रही यशस्विनी सहाय पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय की बेटी हैं और इस लोकसभा चुनाव के जरिए पहली बार सियासत की दुनिया में कदम रख रही हैं.
रांची का सियासी गणित
रांची लोकसभा में छह विधानसभा सीट आती हैं. ये हैं रांची, हटिया, कांके, सिल्ली, खिजरी और ईचागढ़. इसमें से कांके एससी और खिजरी एसटी के लिए रिजर्व है. छह में से तीन सीट पर भाजपा, 1-1 पर आजसू, कांग्रेस और जेएमएम का कब्जा है. यहां सबसे ज्यादा 29 फीसदी आदिवासी, 15 फीसदी मुस्लिम और 12 फीसदी कुर्मी वोटर हैं. इनमें से 52 फीसदी शहरी और 47 फीसदी ग्रामीण वोटर हैं. रांची लोकसभा पहले कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था. पर अब यहां भाजपा का परचम लहराता है. 1952 से अब तक 17 बार हुए चुनाव में आठ बार कांग्रेस और छह बार भाजपा को जीत मिली. जबकि भाजपा के टिकट पर सबसे ज्यादा पांच बार रामटहल चौधरी चुनाव जीते थे. पर 2004 और 2009 में लगातार दो बार कांग्रेस उम्मीदवार सुबोधकांत सहाय ने उन्हें हरा दिया था.
2014 के मोदी लहर में रामटहल चौधरी ने जोरदार वापसी की. उस समय भाजपा को 42.7 प्रतिशत और दूसरे स्थान पर रही कांग्रेस को महज 23.76 प्रतिशत वोट मिले थे. जीत का अंतर 1,99,303 वोटों का रहा था. 2019 में फिर मोदी का मैजिक दिखा. भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़नेवाले संजय सेठ 57.30 फीसदी वोट के साथ प्रचंड जीत दर्ज की. तब दूसरे स्थान पर रहे कांग्रेस उम्मीदवार सुबोधकांत सहाय को महज 34.3 प्रतिशत वोट मिले. जबकि टिकट कटने से बागी हुए पांच बार के भाजपा सांसद रहे रामटहल चौधरी को निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में महज 2.4 प्रतिशत वोट मिले थे और उनकी जमानत जब्त हो गई थी.
कौन हैं यशस्विनी सहाय..?
रांची की कांग्रेस उम्मीदवार यशस्विनी सहाय सियासी परिवार से आती हैं. वो यूपीए सरकार में मंत्री रहे और पूर्व सांसद सुबोध कांत सहाय और अभिनेत्री रेखा सहाय की बेटी हैं. सुबोध कांत सहाय आखिरी बार 2009 में रांची से सांसद चुने गए थे. 2014 और 2019 में लगातार दो बार उन्हें हार मिली थी. अब उनकी बेटी अपने पिता की विरासत संभालने के लिए रांची के मैदान में ताल ठोंक रही हैं. यशस्विनी सहाय ने मुंबई से लॉ की डिग्री हासिल की. फिर इटली में लॉ में मास्टर किया. इसके बाद मुंबई की सेशन कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस कर रही थी. इसी बीच उन्हें रांची से कांग्रेस का टिकट मिल गया और वो मुंबई से रांची आ गईं. पर उनकी राह आसान नहीं है. उनका सामना उनके पिता को हरानेवाले दिग्गज भाजपा नेता संजय सेठ से हो रहा है.
रांची से लोकसभा के टिकट के लिए कांग्रेस में शामिल होने वाले कुर्मी नेता रामटहल चौधरी भी महज 29 दिन में कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में लौट गए हैं. सिल्ली के आजसू विधायक और कुर्मी नेता सुदेश महतो भी भाजपा के पक्ष में चुनाव प्रचार कर रहे हैं. ऐन चुनाव के मौके पर दोनों कुर्मी नेता भाजपा के साथ चले गए हैं. जबकि रांची लोकसभा में साढ़े तीन लाख से ज्यादा कुर्मी वोटर बताए जाते हैं. पर कांग्रेस को जेएमएम और आरजेडी का पूरा समर्थन मिलता दिख रहा है. इसी साल छह फरवरी को रांची में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा और 21 अप्रैल को इंडिया गठबंधन की उलगुलान रैली की सफलता ने भी कांग्रेस का आत्मविश्वास बढ़ाया है. 22 मई को रांची में हुई कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की रैली से भी माहौल बना है.
संजय सेठ का पलड़ा भारी
रांची लोकसभा में भाजपा उम्मीदवार संजय सेठ का पलड़ा भारी माना जा रहा था.लेकिन ऐन एक पर मुकाबला दिलचस्प होता दिख रहा है,
रांची लोकसभा की 6 में से 4 विधानसभा सीटों पर भाजपा और आजसू का दबदबा है. पिछले दो चुनाव में लगातार रांची में भाजपा का वोट प्रतिशत और जीत का अंतर बढ़ता गया है.लेकिन इस बार आदिवासी और अल्पसंख्यक गोलबंद है,और ये भाजपा के लिए चिंता का विषय है, लोकसभा में वोटिंग से 22 दिन पहले 3 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रोड शो किया था.
गृह मंत्री अमित शाह ने भी 17 मई को रांची में डेढ़ किलोमीटर लंबा रोड शो किया. जिसमें भाजपा कार्यकर्ताओं में जबर्दस्त उत्साह दिखा.लेकिन इस बार की लड़ाई काफी दिलचस्प हो गई है ।