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रांची : डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विवि ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है. यह पहला ऐसा विवि बन गया है, जिसके असुर भाषा पर किये गये काम को लंदन विवि ने अपने आर्काइव में जगह दी है. अब 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस के दिन असुर भाषा पर बड़े पैमाने पर कार्यक्रम आयोजित किया जायेगा. इसके साथ ही उस दिन इस भाषा के डेटा को सार्वजनिक किया जायेगा. इसके बाद पूरी दुनिया इस लुप्तप्राय भाषा के बारे में जान सकेगी.
असुर भाषा पर काम करनेवाली 33 सदस्यीय टीम के समन्वयक डॉ अभय सागर मिंज ने बताया कि इस भाषा के बाद डीएसपीएमयू के अंतरराष्ट्रीय लुप्त प्राय: देशज भाषा केंद्र में तुरी भाषा पर अध्ययन शुरू किया गया है. इसमें विवि के कुलपति डॉ एसएन मुंडा और डीएसडब्ल्यू डॉ नमिता सिंह का पूरा सहयोग रहा.
2019 में शुरू हुआ था कारवां, अब मिला सम्मान
2019 में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विवि ने जनजातीय शोध संस्थान, रांची के संयुक्त तत्वावधान में कील विवि जर्मनी और लंदन विवि के साथ लुप्त प्राय: भाषा पर 10 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया था. इसमें छह देश लंदन, फ्रांस, जर्मनी, नेपाल, स्पेन और भारत के प्रतिनिधि शामिल हुए थे. इस कार्यशाला में पूरे देश भर से 33 लोगों का चयन किया गया था, जिसमें झारखंड से 33 लोग शामिल थे.
इस टीम का समन्वयक प्रलेखन केंद्र के निदेशक डॉ अभय सागर मिंज को बनाया गया था. इसमें झारखंड की लुप्त प्राय: असुर भाषा पर विशेष अध्ययन किया गया था़ इस दौरान यहां प्राथमिक आंकड़े एकत्रित किये गये थे. जिसके बाद कील यूनिवर्सिटी जर्मनी के प्रो जॉन माइकल पीटरसन की मदद से इसे लंदन विवि भेजा गया. इसे अब लंदन विवि के एंडेंजर्ड लैंग्वेज डाक्यूमेंटेशन प्रोग्राम की वेबसाइट पर वर्तमान में ट्रायल के रूप में आर्काइव कर लिया गया है. जिसके बाद डेटा अब हमेशा के लिए सुरक्षित हो गया है.
ऐतिहासिक कार्य करेगा यह केंद्र
मानवशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अब्बास ने कहा कि मानवशास्त्र विभाग के अंतर्गत स्थापित यह प्रलेखन केंद्र भविष्य में ऐतिहासिक कार्य करेगा. केंद्र के एक्सपर्ट डॉ विनय भरत ने समय-समय पर शोधार्थियों को भाषा संबंधित डेटा संग्रह की विधियों के विषय में अवगत कराया. इस उपलब्धि में केंद्र के शोधार्थी रेणु मुंडा, बसंती महतो, दीक्षा सिंह और आनंद बारला का सहयोग रहा.