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चुटिया रेलवे ओवरब्रिज का विरोध नहीं,वैकल्पिक रास्ता निकाला जाए

रांची:आज पावर हाउस रोड चुटिया के नागरिकों की रेलवे ओवर ब्रिज के संबंध में एक बैठक आयोजित की गई बैठक में मुख्य वक्ता के रूप में झारखंड मुक्ति मोर्चा महिला प्रकोष्ठ की केंद्रीय अध्यक्ष डॉक्टर महुआ मांझी पदम श्री मुकुंद नायक एवं पूर्व पार्षद और चुटिया के प्रमुख नेता श्री विजय साहू एवं रामचरण विश्वकर्मा मुख्य रूप से उपस्थित हुए उन्होंने इस समस्या पर प्रकाश डालते हुए अपने विचारों से जनता को अवगत कराया श्री विजय साहू ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा की झारखंड की प्राचीन राजधानी शुक्रिया नागपुर के नाम से चुटिया प्रसिद्ध है जिसका सैकड़ों साल पुराना इतिहास है यहां की संस्कृति एवं राम मंदिर जैसी प्राचीन धरोहर आज भी विद्यमान है और उन्होंने बताया की हम रेलवे ओवरब्रिज का विरोध नहीं कर रहे

बल्कि हम एक वैकल्पिक रास्ता सुझा रहे हैं जिसके अंतर्गत वर्मा सेल स्थित भारत पैट्रोलियम के गोदाम से शुरू कर दक्षिण दिशा में रेलवे की खाली जमीन पर इसे उतारने की बात कर रहे हैं जिससे कि सरकार की निर्माण लागत भी कम होगी एवं जमीन अधिग्रहण की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी और लोगों को विस्थापित भी नहीं होना होगा तथा लोगों को भूखे मरने की नौबत भी नहीं आएगी और एक सर्वमान्य रास्ता जो कि बहुविकल्पीय होगा निकलेगा पदम श्री मुकुंद नायक जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा की विस्थापन की समस्या बहुत गंभीर है हटिया जैसे उद्योग की स्थापना के बाद सैकड़ों गांव तबाह हो गए जिनके विस्थापन का दर्द आज भी लोग झेल रहे हैं

इसलिए सरकार को सर्वमान्य रास्ता निकालना चाहिए जिससे कि विस्थापन रोका जा सके स्थानीय झामुमो नेता श्री रामचरण विश्वकर्मा ने आश्वासन दिया की वह स्थानीय जनता का समर्थन करते हैं और स्थानीय लोगों की आदिवासी लोगों की ही सरकार अभी सत्ता में है इसलिए वह सभी आदिवासी मूलवासी भाइयों की आवाज को सरकार तक पहुंचा कर एक अच्छा रास्ता निकालने का प्रयास करेंगे अंत में उपस्थित महिलाओं ने भी अपने विचारों से अवगत करते हुए वक्ताओं को अपनी समस्या को विस्तृत रूप से समझाया और बताया कि वह बहुत ही गरीब तबके से आती हैं और विस्थापन से उनका सब कुछ छीन जाएगा कुछ गरीब छात्राएं भी सभा में उपस्थित थे उन्होंने भी वक्ताओं से निवेदन किया कि ऐसा कोई भी काम नहीं हो जिससे उनका एकमात्र स्कूल जो कि सैकड़ों साल पुराना है तबाह हो जाए कुछ आदिवासी वक्ताओं ने भी अपने मसना का सवाल उठाते हुए बताया कि पूर्व में भी उनके मसना को काफी हद तक अतिक्रमण कर लिया गया है अब जो थोड़ा बहुत मसना का हिस्सा बचा हुआ है वह भी अब पुल की भेंट चढ़ जाएगा और आदिवासी भाइयों को शव दफन करने की जो सीमित जगह है वह भी और कम हो हो जाएगी

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