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अपने एजेंडे की बजाय संवैधानिक दायित्वों को पूरा करें राज्यपाल : बंधु तिर्की

अल्पसंख्यक कॉलेजों को चांसलर पोर्टल से छूट न देना और और चांसलर पोर्टल के माध्यम से ही नामांकन करवाने को विवश करना संविधान के अनुच्छेद 30 (1) का उल्लंघन

रांची:झारखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने कहा है कि झारखण्ड के माननीय राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन को राज्यपाल के रूप में अपने संवैधानिक दायित्वों को अनिवार्य स्वरुप से पूरा करना चाहिये और उन्हें संविधान में प्रदत्त उन प्रावधानों का अक्षरश: पालन करना चाहिये जो अल्पसंख्यक संस्थाओं को संविधान के द्वारा दिया गया है. श्री तिर्की ने कहा कि माननीय राज्यपाल से अनुरोध करने के साथ ही यह भी अपेक्षा है कि वे, अल्पसंख्यकों को कम वरीयता देने के भारतीय जनता पार्टी के उन घोषित एजेंडे पर काम नहीं करें क्योंकि वे माननीय राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर बैठे हैं.
श्री तिर्की ने कहा कि झारखण्ड के अनेक अल्पसंख्यक महाविद्यालयों सेंट जेवियर्स कॉलेज, गोस्सनर कॉलेज, निर्मला कॉलेज, परमवीर अल्बर्ट एक्का मेमोरियल कॉलेज चैनपुर, संत जोसेफ कॉलेज तोरपा, मौलाना आजाद कॉलेज, योगदा सत्संग महाविद्यालय आदि को रांची विश्वविद्यालय के द्वारा यह निर्देश दिया गया कि वे चांसलर पोर्टल के माध्यम से ही अपने-अपने महाविद्यालयों में इस सत्र के विद्यार्थियों नामांकन करवायें. विश्वविद्यालय में यह कहा था कि यदि ऐसा नहीं होता है तो वैसे विद्यार्थियों का ना तो विश्वविद्यालय के द्वारा पंजीकरण किया जायेगा और ना ही उनकी परीक्षा ली जायेगी. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के इस निर्णय पर अल्पसंख्यक महाविद्यालयों ने अपनी आपत्ति दर्ज करायी थी और इस पोर्टल से अपने-आप को जोड़ने की बजाय उन्होंने राज्यपाल सह कुलाधिपति सी. पी. राधाकृष्णन से यह गुहार लगायी थी कि अल्पसंख्यक कॉलेजों चांसलर पोर्टल से न जुड़ने की छूट दी जाये. लेकिन राज्यपाल सह कुलाधिपति ने अल्पसंख्यक कॉलेजों के उक्त अनुरोध का नकारते हुए उन्हें निर्देश दिया कि वे सभी चांसलर पोर्टल के माध्यम से ही अपने विद्यार्थियों का नामांकन करवायें.
श्री तिर्की ने कहा कि राज्यपाल सह कुलाधिपति का यह निर्देश पूरी तरीके से संविधान की अनुच्छेद 30 (1) का उल्लंघन है जिसमें अल्पसंख्यकों को यह अधिकार दिया गया है कि वह न केवल शैक्षिक संस्थान की स्थापना करेंगे बल्कि उसके प्रशासन और प्रबंधन के लिये भी वे स्वतंत्र होंगे. उन्होंने कहा कि हमारा संविधान, अल्पसंख्यक अधिकारों के मामले में समानता, बुनियादी स्वतंत्रता की सुरक्षा, गैर-भेदभाव और अल्पसंख्यकों को उनकी भाषाई या धार्मिक पहचान के आधार पर भेदभाव से बचाता है. अल्पसंख्यकों को अपनी पहचान को संरक्षित करने एवं बेहतर भविष्य के निर्माण के लिये शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उसका संचालन एवं प्रबंधन करने का अधिकार है. श्री तिर्की ने कहा कि भारतीय संविधान में सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों के अंतर्गत अनुच्छेद 29 और अनुच्छेद 30 में अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा की बात कही गई है जिसके अनुच्छेद 30 (1) में भारत के अधिकार क्षेत्र में रहनेवाले धार्मिक और भाषाई आधार के अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा, लिपि या साहित्य और संस्कृति को संरक्षित करने के साथ अपनी संस्कृति और विरासत की सुरक्षा के लिये अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उसे संचालित करने का प्रावधान देता है.
श्री तिर्की ने कहा कि व्यावहारिक रूप में भी ऐसा न होने पर अनेक तरह की समस्यायें खड़ी होगी. उन्होंने कहा कि झारखण्ड जैसे प्रदेश में उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिये यह बहुत जरूरी है कि जमीनी वास्तविकताओं का ध्यान रखा जाये. वर्तमान स्थिति में यदि चांसलर पोर्टल के माध्यम से नामांकन किया जाता है तो संभव है कि किसी अल्पसंख्यक समुदाय से आनेवाले किसी छात्र-छात्रा का नामांकन अपने क्षेत्र के महाविद्यालय की बजाय दूर-दराज के किसी महाविद्यालय में हो जिसका खामियाजा उसे एवं उसके परिवार को ही उठाना पड़ेगा. यह भी संभव है कि उक्त विशिष्ट छात्र-छात्रा को उच्च शिक्षा से वंचित होना पड़े. श्री तिर्की ने कहा कि अल्पसंख्यक महाविद्यालयों को चांसलर पोर्टल से छूट देने की माँग न्यायपूर्ण, संवैधानिक और व्यावहारिक भी है और झारखण्ड की जमीनी जरूरत को देखते हुए राज्यपाल सह कुलाधिपति को गंभीरतापूर्वक व्यवहारिक निर्णय लेना चाहिये. श्री तिर्की ने कहा कि यदि माननीय राज्यपाल सह कुलाधिपति महोदय ने अल्पसंख्यक महाविद्यालय की इस संवैधानिक एवं व्यावहारिक मांग के अनुरूप सकारात्मक रवैया नहीं अपनाया तो राजभवन के समक्ष आंदोलनात्मक रवैया अपनाने को वे बाध्य होंगे.

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