रांची:तीन दशक पहले रांची में आतंक का पर्याय माना जाने वाला अपराधी सुरेंद्र सिंह रौतेला उर्फ सुरेंद्र बंगाली की क्रीमिनल याचिका पर बुधवार को हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. सुरेंद्र बंगाली को प्रीमेच्योर 25 साल की सजा के बाद रिहाई को लेकर सरकार का पक्ष रखने के लिए महाधिवक्ता ने समय की मांग की, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है. सुरेंद्र बंगाली ने हाईकोर्ट में क्रीमिनल याचिका दाखिल कर कहा है कि हत्या के मामले में अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनायी थी. वह 25 साल से अधिक समय से जेल में बंद हैं. वर्ष 2003 में राज्य स्तर पर गठित पुनरीक्षण बोर्ड ने उनकी रिहाई के आवेदन को खारिज कर दिया था. सुरेंद्र बंगाली ने इसी साल सुप्रीम कोर्ट के (जोसेफ बनाम स्टेट ऑफ केरला) फैसले का हवाला देते हुए प्रीमेच्योर रिलीज का आग्रह किया है. उल्लेखनीय है कि वर्ष 1996 में लालपुर थाना क्षेत्र में हुई एक हत्या मामले में अदालत ने सुरेंद्र बंगाली को फांसी की सजा सुनायी थी. वर्ष 2000 में हाई कोर्ट ने भी फांसी की हाईकोर्ट की सजा को कायम रखा था. इसके बाद सुरेंद्र बंगाली ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. वर्ष 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने उसकी फांसी की सजा को आजीवन कारावास की सजा में तब्दील कर दी थी.
पहले 14 साल की सजा काटने के बाद कर दिया जाता था रिहा
गौरतलब है कि पहले आजीवन कारावास की सजा पाने वाले व्यक्ति को 14 साल की सजा काटने के बाद रिहा कर दिया जाता था. बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर यह व्यवस्था बनी कि आजीवन कारावास का मतलब पूरी जिंदगी जेल में रहना पड़ेगा. साथ ही यह भी व्यवस्था बनी कि आजीवन कारावास की सजा प्राप्त व्यक्ति 20 साल की सजा काटने के बाद राज्य स्तर पर गठित पुनरीक्षण बोर्ड में अपील कर प्रीमेच्योर रिहाई का लाभ ले सकता है.