रांची: नावासे रसूल हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में रांची में निकलने वाले मातमी जुलूस का दीदार करने के लिए लोग बे करार थे। मातमी जुलूस को करोना संक्रमण के कारण इस वर्ष भी नहीं निकाला गया। लोगों ने अपने अपने घरों में या हुसैन की सदा लगाई। और इमामबाड़ो में नजर और फातिहा किया। मुहर्रम के पहली तारीख से लेकर दसवीं तारीख तक लम और ताजिया पर चढ़ाए गए फूल को इमामबाड़ा से ले जाकर कर्बला पर 4 से 7 लोगों ने दफन किया। मौलाना सैयद तहजीब उल हसन की अगवाई में किया गया। मजलिस ए रोजेआशूर को हज़रत मौलाना हाजी सैयद तहजिबुल हसन रिज़वी ने संबोधित करते हुए इमाम हुसैन की शहादत को हक वालों की जीत बताया। और यह भी कहा की मजहब और धर्म की आड़ लेकर जो लोग इंसानियत को कमजोर करते हैं वह खुद कमजोर हो जाते हैं, इंसानियत कमजोर नहीं हो सकती। इंसानियत को कर्बला में इमामे हुसैन ने हमेशा हमेशा के लिए हयात( जिंदगी) बख्शी है। लोगों ने शहीदाने कर्बला का जिक्र सुनकर लोग फूट-फूट कर रोने लगे। यह प्रोग्राम ऑनलाइन पूरी दुनिया में देखा जा रहा था। और लोग रांची के इस मोहर्रम को लोगों के लिए प्रतीक समझ रहे थे। 10 दिवसीय कार्यक्रम अंजुमन जाफरिया के तत्वाधान में किया गया। नोहा खानी हाशिम अली, कासिम अली, हसनैन रिज़वी, आमोद अब्बास ने नोहा खानी, मरसिया खानी प्रोफेसर डॉक्टर जफर, अशरफ हुसैन रिजवी, डॉ हैदरी ने किया।
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