रांची:झारखण्ड में 1950 के जिला एवं थाना क्षेत्र के आधार पर सीएनटी जमीन की खरीद-बिक्री को मंजूरी मिले भी तो इसका व्यावसायिक इस्तेमाल न हो रांची 24 नवम्बर. पूर्व मंत्री, झारखण्ड सरकार की समन्वय समिति के सदस्य एवं झारखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने कहा है कि छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी एक्ट) में 1950 के जिला एवं थाना क्षेत्रों को आधार बनाने सम्बंधित आवश्यक संशोधन के लिये जनजातीय परामर्शदात्री परिषद (टीएसी) की बैठक में सहमति तो मिल गयी है लेकिन वह अंतिम मंतव्य नहीं है. श्री तिर्की ने कहा कि इस मामले में झारखण्ड के लोगों और ज़मीन के जानकार विशेषज्ञ लोगों से भी सुझाव माँगा जाना चाहिये. उन्होंने कहा कि 1950 में वर्तमान झारखण्ड क्षेत्र में केवल 7 जिले और बहुत कम थाना क्षेत्र थे जबकि आज उसकी संख्या बढ़ गयी और इस दृष्टिकोण से आवश्यक बदलाव जरूरी है. श्री तिर्की ने कहा कि यह भी स्पष्ट होना चाहिये कि सीएनटी के सन्दर्भ में किसी विधायक ने अपना क्या सुझाव दिया है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के द्वारा अबतक इस मामले पर अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है और अनेक नेताओं के द्वारा कही जा रही बातें केवल भ्रमित करने का ही प्रयास है.
श्री तिर्की ने कहा कि यदि टीएसी यह महसूस करती है कि झारखण्ड के आदिवासियों के हित में यह जरूरी है कि 1950 के जिला एवं थाना क्षेत्र के आधार पर ही आदिवासी जमीन की खरीद-बिक्री को मंजूरी देते हुए आवश्यक संशोधन किया जाये तो उससे पहले सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद ही ऐसा फैसला करना चाहिये. इस मामले में सरकार को अनिवार्य रूप से यह ध्यान रखना चाहिये कि सीएनटी एक्ट में वैसे ही संशोधन किये जायें जिससे इस कानून का किसी भी दृष्टिकोण से दुरुपयोग नहीं हो और न ही आदिवासियों का हित प्रभावित हो.श्री तिर्की ने कहा कि अबतक सीएनटी एक्ट में तमाम प्रावधानों के बाद भी झारखण्ड में आदिवासी जमीन का व्यापक स्तर पर दुरुपयोग हो रहा है और सही अर्थो में कहा जाये तो आदिवासियों के हाथ से जमीन लूटी जा रही है. लेकिन फिर भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बरसों पुराना यह कानून, बदली हुई परिस्थितियों में कुछेक प्रावधानों के अंतर्गत अप्रासंगिक हो चुका है और इस परिप्रेक्ष्य में आवश्यक संशोधन निश्चित रूप से किया जाना चाहिये परन्तु इस मामले में दो महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिये. ना तो वैसी जमीन का व्यापक स्तर पर व्यावसायिक इस्तेमाल हो और एक सीमा से अधिक इसकी खरीद-बिक्री को किसी भी हाल में मंजूरी नहीं दी जाये अर्थात प्रत्येक खरीद-बिक्री की सीमा को कठोरता से निर्धारित भी किया जाये और उसका व्यावहारिक स्तर पर अनुपालन भी हो.