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विश्व रक्तदान दिवस पर राज्य के रक्तवीर डॉ चंद्रभूषण से खास बातचीत .

कल 14 जून को विश्व रक्तदान दिवस है, और यह दिन सारे नियमित रक्तदाताओं के सम्मान की है.

हालांकि बहुत कम लोग इस रक्तदान दिवस के पीछे की कहानी से रूबरू होंगे। आज हम आपको बताने जा रहे हैं उस व्यक्ति के बारे में जिसने ब्लड ग्रुप्स का पता लगाया था उनका नाम है कार्ल लैंडस्टीनर, जिनके जन्मदिन के दिन हम विश्व रक्तदान दिवस मनाते हैं।

हालांकि दुनिया का पहला रक्त आधान 1665 में माना जाता है जिसे इंग्लैंड में फिजिशियन रिचर्ड लोअर ने किया था,रिचर्ड ने दूसरे कुत्तों के रक्त को एक कुत्ते में ट्रांसफर करके उसकी जान बचाई थी।

कार्ल लैंडस्टीनर

कार्ल लैंडस्टीनर का जन्म 14 जून 1868 को ऑस्ट्रिया के शहर वियाना में हुआ था। उन्होंने पता लगाया कि एक व्यक्ति का खून बिना जांच के दूसरे को नहीं चढ़ाया जा सकता है क्योंकि सभी मनुष्य का ब्लड ग्रुप अलग होता है।

कार्ल लैंडस्टीनर का तर्क था कि दो व्यक्तियों के विभिन्न ब्लड ग्रुप संपर्क में आने के साथ रक्त अणुओं पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
1900-1901 दौरान कार्ल लैंडस्टीनर ने इंसानी खून के एबीओ रक्त समूह और रक्त में मिलने वाले एक अहम तत्व आरएच फैक्टर की खोज की।

उन्हें 1930 में नोबल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था,अपनी महान खोज के कारण उन्हें ट्रांसफ्यूजन मेडिसन का पितामह भी कहा जाता है।

आवश्यकता है रक्तदान क्रांति की
स्वैच्छिक रक्तदान प्रोत्साहित किया जाए* : डॉ चंद्रभूषण

हर साल देश की कुल 2500 ब्लड बैंकों में 70 लाख यूनिट रक्त इकट्ठा होता है, जबकि जरूरत है 90 लाख यूनिट की। इसका भी केवल 20 प्रतिशत ही रक्त बफर स्टॉक में रखा जाता है और शेष का इस्तेमाल कर लिया जाता है।
नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (नाको) की गाइडलाइंस के मुताबिक दान में मिले हुए रक्त का 25 प्रतिशत बफर स्टॉक में जमा किया जाना चाहिए, जिसे सिर्फ आपातस्थिति में ही इस्तेमाल किया जा सके। एक यूनिट रक्त 350 मिलीलीटर होता है।रक्तसंकट के मद्देनजर देश को एक रक्तदान क्रांति की सख्त जरूरत है।

मरीज की जान बचाने के लिए रक्त चढ़ाना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। शरीर के बाहर रक्त किसी भी परिस्थिति में ‘पैदा’ नहीं किया जा सकता। जाहिर है, इसे केवल रक्तदान से हासिल किया जा सकता है। रक्तदान दो तरह का होता हैः एक, जिसमें मरीज को चढ़ाए गए रक्त की भरपाई उसके स्वस्थ परिजन से लेकर की जाती है तथा दूसरे, ‘स्वैच्छिक’ रक्तदान से।

फिलहाल माँग का केवल 53 प्रतिशत रक्त ही स्वैच्छिक रक्तदान से हासिल होता है। शेष की पूर्ति ‘रिप्लेसमेंट’ से होती है। 1998 में सर्वोच्च न्यायायल के निर्देश पर देश में पेशेवर रक्तदान पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया था। न्यायालय की मंशा यह थी कि मरीज के परिजनों से लिए गए रक्त की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सकेगी लेकिन इससे बचने के भी रास्ते निकल आए हैं।

जिन मरीजों के परिजन रक्तदान करने की स्थिति में नहीं होते वे ऐसे पेशेवरों का सहारा लेते हैं जो रिश्तेदार तो नहीं हैं लेकिन ब्लडबैंक में ‘रिश्तेदार’ बनकर ही पहुँचते हैं। यही वजह है कि अब पेशेवर रक्तदाताओं का एक ऐसा वर्ग खड़ा हो गया जो पैसा लेकर ब्लड बैंक पहुँचने लगा है, और इसपर अंकुश लगाना आवश्यक है।

इंडियन सोसायटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन एंड इम्यूनो-हिमेटोलॉजी (आईएसबीटीआई) के मुताबिक स्थिति इसलिए भी गंभीर हो जाती है क्योंकि हमारे देश में अब भी पूर्ण रक्त चढ़ाने का चलन है। डॉ चंद्रभूषण का मानना है कि रक्त को एक जीवनरक्षक औषधि के तौर पर देखा जाना चाहिए।

अधिकांश मामलों में पूर्ण रक्त चढ़ाने की जरूरत नहीं होती बल्कि रक्त के अवयव (प्लेटलेट, आरबीसी, डब्ल्यूबीसी) चढ़ाने से ही मरीज ठीक हो जाता है। दुनिया भर में 90 प्रतिशत मामलों में रक्त के अवयवों का प्रयोग होता है जबकि हमारे देश में केवल 15 प्रतिशत मामलों में ही इनका प्रयोग होता है। 85 प्रतिशत मरीजों को पूर्ण रक्त चढ़ा दिया जाता है।
इस विसंगति की दूसरी वजह यह भी है कि हमारे देश में ब्लड कंपोनेन्ट सेपरेटर मशीनें बहुत ही कम ब्लड बैंकों में लगी हैं, इसके अलावा कंपोनेन्ट्स को अलग करने में लागत बढ़ जाती है।
रक्त की कमी के कारण देश में हर साल 15 लाख मरीज जान से हाथ धो बैठते हैं, इनमें सबसे बड़ी संख्या उन बच्चों की है जिन्हें थेलेसीमिया के कारण जल्दी-जल्दी रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है।
हादसों के शिकार घायलों, मलेरिया के मरीजों, कुपोषणग्रस्त बच्चों के अतिरिक्त गर्भवती महिलाओं को कई कारणों से रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है।

संक्रमित रक्त का जोखिम

दरअसल हमारे देश में स्वैच्छिक रक्तदान अब भी जीवनशैली का हिस्सा नहीं हो सका है। आज भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अस्पतालों के इमरजेंसी रूम्स या ऑपरेशन थिएटरों में पड़े अपने रिश्तेदारों को रक्तदान करने के बजाए मुँहमाँगी कीमत पर खून खरीद लेने की पेशकश करते हैं,ऐसे में पेशेवर रक्तदाता ‘रिश्तेदार’ बनकर सामने आते हैं और 47 प्रतिशत रक्त की जरूरत इन्हीं लोगों से पूरी होती है। ऐसे ‘स्वैच्छिक’ रक्तदाता के खून की गुणवत्ता तो निश्चित ही गिरी हुई होती है, साथ ही संक्रमित है या नहीं इसकी भी जाँच नहीं हो पाती। आज देश में हजार में से तीन लोगों को दूषित रक्त चढ़ाने के कारण एचआईवी का संक्रमण होता है।

हर रक्तदाता को नियमानुसार पहले तीन महीनों के लिए निगरानी (विंडो पीरियड) में रखा जाना चाहिए।
रक्तदाता के खून में एचआईवी का संक्रमण है या नहीं, यह जाँचने के लिए ऐसा करना आवश्यक है। आज जिसने रक्तदान किया हो और परीक्षण में एचआईवी वायरस की रिपोर्ट नेगेटिव आई हो, उसका तीन महीने बाद पुनः परीक्षण होना चाहिए। इसमें संक्रमण नहीं आने पर ही रक्त किसी मरीज को चढ़ाने के योग्य समझा जाता है लेकिन हमारे यहाँ ऐसा नहीं हो पाता। यही वजह है कि पूर्ण रूप से स्वस्थ रक्तदाताओं को रक्तदान के लिए आगे आना चाहिए।

क्या है स्थिति रक्तदान की

देश में फिलहाल केवल 500 ब्लड बैंक ही ऐसी हैं जिन्हें बड़ी ब्लड बैंक कहा जा सकता है। यहाँ हर साल 10 हजार यूनिट्स से अधिक रक्त जमा होता है इनमें करीब 600 ऐसी ब्लड बैंकें हैं जो हर साल 600 यूनिट्स ही इकट्ठा कर पाती हैं शेष 2433 ब्लड बैंक्स ऐसी हैं जो 3 से 5 हजार यूनिट्स हर साल इकट्ठा कर लेती हैं।

डॉ चंद्रभूषण के मुताबिक राज्य में ब्लड का स्टॉक रहना बहुत जरूरी है ताकि किसी भी आपातस्थिति में में ब्लड के लिए भागने की जरूरत नहीं हो.

देश में लगभग 25 लाख लोग स्वैच्छिक रक्तदान करते हैं।
सबसे अधिक ब्लड बैंक महाराष्ट्र (270) में हैं इसके बाद तमिलनाडु (240) और आंध्रप्रदेश (222) का स्थान आता है। सबसे दुखद स्थिति उत्तर पूर्व के सात राज्यों की है इन सातों राज्यों में कुल मिलाकर 29 अधिकृत ब्लड बैंक्स हैं।

कैसा होना चाहिए रक्त

इंडियन फार्माकोपिया के मुताबिक मानव रक्त एक औषधि है,इसके लिए कुछ शर्तें और नियम लागू किए गए हैं।
मरीज को चढ़ाने के लिए प्राप्त रक्त को एचआईवी एंटीबॉडीज संक्रमण से मुक्त होना चाहिए। इसे हिपेटाईटिस बी और सी नामक वायरसों के अलावा सिफलिस, मलेरिया आदि से भी मुक्त होना चाहिए।

कौन कर सकता रक्तदान

कोई भी ऐसा व्यक्ति रक्तदान कर सकता है, जो

1. 18-60 वर्ष की उम्र का हो,

2. तीन साल से जिसे मलेरिया का संक्रमण न हुआ हो,

3. एक साल से पीलिया न हुआ हो,

4. उच्च रक्तचाप और डायबिटीज का रोगी न हो।

देश में स्वैच्छिक रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए अब तक जो कुछ भी किया गया है वह अपर्याप्त साबित हुआ है, दरअसल जितनी बड़ी मात्रा में हमें शुद्ध रक्त चाहिए उसके लिए एक महा-आंदोलन की जरूरत है।

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