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भाजपा सरकार ने चाय श्रमिकों से किया अपना वादा नही निभाया:बंधु तिर्की

न्यूजरूम:कार्यकारी अध्यक्ष झारखंड,कांग्रेस विधायक बंधु तिर्की आदिवासी समन्वय मंच भारत के तत्वाधान में आसाम में दिनाँक 12 सितंबर और 13 सितंबर को आयोजित वार्षिक राष्ट्रीय आदिवासी मीट में विशिष्ट अतिथि के तौर पर संबोधित करते हुए कहा 2014 के केंद्रीय आम चुनाव एवं 2016,2021 में प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने चाय बागानों में काम करने वाले आदिवासी चाय श्रमिकों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का वादा किया था। साथ ही, आवास का पट्टा देने और दैनिक मजदूरी 351 रुपए करने संबंधी घोषणा भी की गई थी। इन घोषणाओं के कारण ही चाय श्रमिकों ने चुनाव में भाजपा को वोट देकर उसकी सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।
लेकिन वास्तविकता यह है कि भाजपा सरकार ने चाय श्रमिकों से किया अपना वादा नही निभाया।
मैं आपको बता सकता हूं कि छह समुदायों को एसटी का दर्जा देने का एनडीटीवी द्वारा प्रकाशित एक खबर के मुताबिक असम के छह समुदायों– कोच राजबोंगशी, ताई अहोम, चुटिया, मटक, मोरन और चाय जनजाति को एसटी का दर्जा दिए जाने का मामला अभी भी लंबित है। एसटी का दर्जा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा केंद्र सरकार को अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए लोकसभा में प्रस्ताव पारित कराया लेकिन राज्यसभा में प्रस्ताव लाया ही नहीं गया। साथ ही आवास पट्टा देने और दैनिक मजदूरी 351 रुपए करने का भी वादा पूरा नहीं किया, जिससे असम के आदिवासी चाय श्रमिक खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।  हम मूलरुप से प्रकृति पूजक आदिवासी लोग हैं। हम झारखंड-मध्य प्रदेश के उरांव, मुंडा, हो, संथाल, गोंड आदिवासी हैं। ये लोग हमें चाय जनजाति कहकर हमारा अपमान करते हैं। क्या कोई चाय की जनजाति होती है? चाय जनजाति बोलकर हमलोगों को बहिष्कृत और वंचित रखने की कोशिश की जा रही है। असम में अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं मिलने से हमलोगों को कई मूलभूत अधिकारों से वंचित होना पड़ता है। जबकि हम शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक ढंग से लगभग 60 वर्ष से भी अधिक समय से एसटी दर्जे की मांग कर रहे हैं। लेकिन असम की सरकार ने ए.के. चंदा, शबर और लोकूर समितियों और आयोगों द्वारा की गई स्पष्ट सिफारिशों के बावजूद हमारी मांगों की उपेक्षा की जा रही है असम में आदिवासी चाय श्रमिकों की संख्या लगभग एक करोड़ है, जो वहां की 3.5 करोड़ आबादी का लगभग 30 फीसदी है। यदि हम आदिवासी चाय श्रमिकों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल जाएगा तो हमलोगों के लिए यहां लगभग 45 विधानसभा सीटें आरक्षित हो जाएंगीं और हमलोग राज्य में सरकार बनाने में मुख्य भूमिका में आ जाएंगे। इसलिए यहां सत्ता में बैठे का दर्जा नहीं देना चाहते हैं।
इस अवसर पर मंच का संचालन तख्ता राम झील रार्ष्ट्रीय अध्यक्ष आदिवासी समन्वय समिति भारत के द्वारा किया गया, वक्ता के रूप में श्री मुथैया जी कर्नाटका, विनय प्रकाश एक्का छत्तीसगढ़, श्रीमती कीर्ति बारथा, अरुण चौधरी गुजरात, कांवरलाल परमार राजस्थान, अशोक बागुल महाराष्ट्र, अल्वीश डैमब्रोम त्रिपुरा आदि

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