Newsroom:कालरात्रि नवरात्रि की सप्तमी तिथि पर मां दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप का पूजन होता है। मां कालरात्रि अपने नाम के स्वरूप रात्रि के समान काली हैं। उनके बाल बिखरे हुए हैं और गधे को अपनी सवारी बनाती हैं। उनके एक हाथ में खड़ग, एक हाथ में शूल है और दाहिने हाथ अभय और वर मुद्रा में हैं। मां का ये विकराल रूप काल को भी परास्त कर देता है, इसलिए ही मां को कालरात्रि कहा जाता है। मां कालरात्रि के पूजन से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है और भूत-प्रेत बाधा, शत्रु और रोग-दोष का नाश होता है।मां कालरात्रि का पूजन नवरात्रि की सप्तमी तिथि को करने का विधान है। इस साल सप्तमी की तिथि 12 अक्टूबर, दिन मंगलवार को पड़ रही है। मां कालरात्रि के पूजन के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। इसके बाद मां को रोली,अक्षत,दीप,धूप अर्पित करें। हो सके तो मां को रातरानी का फूल और गुड़ अर्पित करें। ये दोनों ही मां कालरात्रि को प्रिय हैं। इसक बाद दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा का पाठ करें तथा मां के मंत्रों का जाप करें। मां कालरात्रि के पूजन का अंत उनकी आरती करके करना चाहिए।
मां कालरात्रि के मंत्रो का जाप लाल कंबल के आसन पर बैठ कर, लाला चंदन की माला से या फिर रूद्राक्ष की माला से करना चाहिए। मां कालरात्रि के मंत्रों का जाप करने से सभी प्रकार के भय समाप्त हो जाते हैं और शुभ फल की प्राप्ति होती है। इसलिए ही मां को शुभकरी भी कहते हैं।
Note : ”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।”