कुरआन पाक में बदलाव की मांग करने वाला मुसलमान नहीं हो सकता
रांची: झारखंड राज्य हज कमेटी के सदस्य सह मस्जिद जाफरिया रांची के इमाम व खतीब हज़रत मौलाना अल्हाज सैयद तहज़ीबुल हसन रिज़वी ने मलऊन वसीम रिज़वी के कुरआन पाक में बदलाव वाले बयान की कड़ी निंदा की। कहा कि हिंदुस्तान के सबसे बड़ा मलऊन वसीम रिज़वी अपने बाप आरएसएस के इशारो पर सुप्रीम कोर्ट में पवित्र कुरआन के 26 आयतों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। ये जाहिल मलऊन वसीम रिज़वी जो उर्दू तक न पढ़ सकता हो इसकी यह औक़ात भला अरबी ज़बान और क़ुरआन पाक की आयत के बारे में बात करें। ये मलऊन अपने आकाओं के इशारे पर शिया सुन्नी को विभाजित करने की साजिश रच रहा है।
मौलाना ने कहा कि इसके बेदीनी हरक़तों पर शिया उलेमा ने इराक़ में रहने वाले आयतुल्लाह सिस्तानी और आयतुल्लाह बशीर नजफी से इसकी बेदीनी पर सवाल किया था तो उन्होंने इसे इस्लाम से ख़ारिज क़रार दिया था। इस्लाम मे ज़ालिमों का कोई मक़ाम नहीं और यह मलऊन बदबख्त वसीम रिज़वी अव्वल दर्जे का ज़ालिम है। इस व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि पवित्र कुरआन के 26 आयतों को हटा दिया जाए। बदबख़्त का कहना है कि पैग़म्बर मोहम्मद सल्ल. के वफ़ात के बाद उनके ख़लीफ़ाओं ने क़ुरआन में आयत शामिल कर दिया।
तथ्य यह है कि दुनिया भर के सभी धर्मों के मुसलमानों का मानना है कि कोई भी इंसान पवित्र क़ुरआन में एक भी बिंदु का फेर बदल नहीं कर सकता। और ना ही किसी ने की हैं। मलऊन वसीम रिजवी ने इस जनहित याचिका के माध्यम से मुस्लिमों में सांप्रदायिक मतभेदों और कुप्रथाओं को उकसाने की कोशिश की है। वसीम रिजवी को शिया संप्रदाय से पहले ही निष्कासित कर दिया गया है। प्रमुख शिया विद्वानों ने पहले ही ऐसा किया है। मलऊन बार-बार साबित कर दिया कि वह मुस्लिम नहीं है। यहां तक कि एक अदना मुसलमान भी पवित्र कुरआन के अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सकता है।