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सखुआ के पत्ते पर पाइका नृत्य के साथ हुआ आदिवासी सामाजिक दस्तावेज का विमोचन, बोंगा से मांगा गया आशीर्वाद

रांची: एकता के साथ लड़कर अपना अधिकार लेने के संकल्प के साथ आयोजित आज राजधानी के मोरहाबादी मैदान में आयोजित विमोचन समारोह में आदिवासी जनाधिकार मंच द्वारा आयोजित आदिवासी एकता महारैली के संदर्भ में आदिवासियों के अधिकार और उनकी वर्तमान स्थिति के संदर्भ में दस्तावेज का विमोचन किया गया. इस अवसर पर यह संकल्प लिया गया कि अगले 4 फरवरी को आयोजित होनेवाली महारैली को सफल बनाने के लिये सघन जनसम्पर्क अभियान जारी रहेगा.
इस दस्तावेज से आदिवासियों के सामाजिक, आर्थिक एवं संवैधानिक मुद्दों पर चिंतन की पहल की गयी है.
विमोचन समारोह बोलते हुए प्रभाकर तिर्की ने कहा कि आदिवासियों के साथ ही आदिवासी एवं मूलवासी हितों के प्रति समर्पित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति को संविधान में दिये गये आदिवासियों के अधिकार और उसके संरक्षण पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि रैली के माध्यम से आदिवासियों के मुद्दे को जनता के बीच ले जाया जायेगा और इसी सामाजिक चिंतन के साथ दस्तावेज तैयार किया है जिसका एकमात्र उद्देश्य सच को सामने लाना और आदिवासियों की एकता स्थापित करना है.
इस अवसर पर बोलते हुए केन्द्रीय सरना समिति के अध्यक्ष अजय तिर्की ने कहा कि आदिवासी समाज को एकजुट करना और उन्हें जागरूक करना केवल आदिवासियों की समस्याओं के समाधान के लिए जरूरी नहीं है बल्कि, झारखण्ड की प्रगति के लिये भी यह एक वैसा मामला है जिसका कोई भी विकल्प नहीं है.
अपने सम्बोधन में प्रेम शाही मुंडा ने कहा कि, छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद वहाँ का जंगल काटा जा रहा है और आदिवासी विस्थापन के लिये मजबूर हैं. उन्होंने कहा कि महारैली की सफलता के साथ-साथ आदिवासियों की विकट समस्याओं के समाधान के लिये भी यह बहुत जरूरी है कि आदिवासी समुदाय के साथ-साथ मूलवासी और झारखंड एवं आदिवासियों के प्रति संवेदनशील प्रत्येक व्यक्ति की एकजुटता सुनिश्चित हो. उन्होंने कहा कि ऐसा होने पर ही आदिवासियों के साथ-साथ झारखण्ड की दशा-दिशा भी तय होगी. श्री मुंडा ने कहा कि चाहे राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की बात हो या फिर नये संसद भवन के उद्घाटन की लेकिन श्रीमती द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति होते हुए भी केवल इसीलिये नहीं बुलाया गया क्योंकि वे आदिवासी हैं और यह स्थिति भारतीय जनता पार्टी के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशा पर भी सवाल खड़ा करता है.
अपने संबोधन में दयामणि बारला ने कहा कि झारखण्ड के संसाधनों को लूटने का बहुत ज्यादा प्रयास हो रहा है. उन्होंने कहा कि अतीत में भी ऐसा किया गया और झारखण्ड में जो भी संसाधन बचा है तो उसके पीछे आदिवासियों एवं मूलवासियों की गोलबंदी है. लेकिन इस मुद्दे पर बहुत अधिक गंभीरता की जरूरत है.
अपने संबोधन में रमा खलखो ने कहा कि साजिश के तहत सरना एवं ईसाई आदिवासियों को लड़ाने के साथ ही उनकी एकता को तोड़ने की भी कोशिश की जा रही है और यदि ऐसा हुआ तो यह झारखण्ड पर कुठाराघात होगा. श्रीमती खलखो ने कहा कि साजिश के साथ आदिवासियों के अधिकार छीनने की कोशिश की जा रही है और केन्द्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी, आदिवासियों का आरक्षण समाप्त करना चाहती है.
समारोह में बोलते हुए रतन तिर्की ने कहा कि आदिवासियों के सभी ज्वलंत मुद्दों एवं उनकी वर्तमान स्थिति के संदर्भ में दस्तावेज में विस्तार से बताया गया है और यह वर्तमान विकट परिस्थितियों की गंभीरता बताने के लिए काफी है.
उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज के हितों की सुरक्षा के लिये यह दस्तावेज तैयार किया गया है जो पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों के दृष्टिकोण से भी कारगर साबित होगा.
अपने संबोधन में सेवानिवृत आईपीएस अधिकारी हरि नारायण महली ने कहा कि आदिवासियों को अधिकार से वंचित किया जाना गंभीर चिंता की बात है और इससे भी ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि, स्वभाव से संवेदनशील आदिवासियों में आपसी एकता के प्रति वैसी जागरूकता होनी चाहिये वह नहीं है.
इस विमोचन समारोह में बोलते हुए मोनालिसा लकड़ा ने कहा कि एकता के द्वारा ही आदिवासी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि अगले 4 फरवरी को आयोजित आदिवासी एकता महारैली स्वर्णिम अवसर है और यदि अब भी आदिवासी अपने मामले को गंभीरता के साथ समझने और आपसी एकजुटता बरकरार रखने में सक्षम नहीं होंगे तो इसका खामियाजा लंबे समय तक भुगतना पड़ेगा.
सभी वक्ताओं ने एक स्वर से कहा कि आदिवासियों के संवैधानिक एवं कानूनी अधिकारों को बचाने के लिये राज्य भर से आदिवासी समुदाय के लोग इस महारैली जुटेंगे और जोरदार तरीके से अपनी मांगों को रखेंगे.
आज के विमोचन समारोह में अजय तिर्की, प्रभाकर तिर्की, रमा खलखो, प्रेम शाही मुण्डा, रतन तिर्की, दयामणि बारला, प्रेमचंद मुर्मू, प्रकाश तिर्की, मोनालिसा लकड़ा, हरि नारायण महली, सुषमा बिरुली, महादेव टोप्पो, दिनेश उरांव, शंकर धान, जगदीश लोहरा, मनसा लोहरा, शिवा कच्छप सहित अनेक लोग उपस्थित थे.

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